धर्जल माता, जिन्हें धर्जल देवी, श्री धर्जल माताजी या धर्जल कुलदेवी के नाम से भी पूजा जाता है, एक शक्तिशाली और पूजनीय हिन्दू देवी हैं। ये देवी मुख्य रूप से राजस्थान और मालवा क्षेत्र में महेश्वरी समाज, मारवाड़ी बनिया, और कुछ राजपूत व वैश्य गोत्रों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

धर्जल माता को शक्ति (दुर्गा) का रूप माना जाता है, जो अपने भक्तों के संकटों का नाश करती हैं और परिवार व वंश की रक्षा करती हैं। इनका नाम श्रद्धा और भय दोनों का प्रतीक है — एक ऐसी देवी जो स्नेह से पालन करती हैं और संकट में रक्षक बनकर खड़ी होती हैं।

माता का स्वरूप:

  • धर्जल माता को सिंह पर सवार अथवा कमलासन में चित्रित किया जाता है।
  • उनके हाथों में त्रिशूल, तलवार, कमल, और अभय मुद्रा होते हैं।
  • माता का मुख तेजस्वी और ममत्व से भरा होता है, जो शक्ति और करुणा दोनों का प्रतीक है|

विशेषताएं:

  • कुल रक्षक देवी: धर्जल माता को कुल की रक्षा करने वाली शक्ति माना जाता है।
  • पारंपरिक पूजा विधि: माता को लाल चुनरी, नारियल, मेहंदी, सिंदूर, और श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है।
  • संकटमोचन: माता के नाम का स्मरण मात्र से भक्त भयमुक्त महसूस करते हैं।
  • सदियों पुरानी परंपरा: उनकी पूजा पुराणकालीन कुल-परंपरा से जुड़ी हुई है।

धर्जल माता न केवल एक देवी हैं, बल्कि संस्कृति, परंपरा, और आस्था की जीवंत मूर्ति भी हैं। वे कुल को जोड़ने वाली आत्मा की तरह पूजी जाती हैं — जो हर पीढ़ी को संरक्षण और आशीर्वाद देती हैं।

मंदिर खुलने का एवं आरती समय

प्रातः 6:00 बजे से सांय 8:00 बजे तक

प्रवेश शुल्क (Entry Fee)

दर्शन पूरी तरह निःशुल्क (Free) हैं।

यात्रा सुझाव (Visitor Tips)

सबसे अच्छा समय यात्रा का अक्टूबर से मार्च (गर्मी में रेगिस्तानी तापमान अधिक होता है)

ऐतिहासिक पक्ष

धर्जल माता की पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह मान्यता है कि जब विभिन्न जातियाँ अपने मूल स्थानों से राजस्थान, गुजरात, या मालवा क्षेत्र में स्थानांतरित हुईं, तो वे अपने साथ अपने कुलदेवताओं की उपासना भी साथ लाईं। धर्जल माता उन कुलदेवियों में से एक हैं, जो संकट के समय अपने कुल की रक्षा करती थीं।

  • इतिहास में उल्लेख है कि राजस्थान में बार-बार हुए आक्रमणों के समय कुलदेवियों की पूजा और अधिक गहन हुई।

  • कुछ जनश्रुतियों के अनुसार, धर्जल माता ने किसी समय असुरों या दुष्ट शक्तियों का नाश करके अपने कुल की रक्षा की थी।

  • कई ग्राम्य लोक कथाओं और भजनों में इनकी वीरता और चमत्कारों का वर्णन मिलता है।

धर्जल माता का इतिहास केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है, जो समाज को एक धागे में जोड़ती है।

समीप रमणीय स्थल

कैसे पहुँचें?

राजस्थान रोडवेज और निजी बस सेवाएं नियमित रूप से जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, और अन्य शहरों से पोखरण के लिए उपलब्ध हैं।

 प्रमुख मार्ग:

  • जोधपुर → ओसियां → फलौदी → पोखरण (170 किमी, NH-125 और NH-11 द्वारा)
  • जैसलमेर → पोखरण (~112 किमी, NH-11)
  • बीकानेर → पोखरण (~240 किमी)

निजी वाहन, टैक्सी, या कैब से यात्रा भी बहुत आसान है और रास्ते में कई दर्शनीय स्थान भी आते हैं।

निकटतम रेलवे स्टेशन: Pokhran Railway Station 

निकटतम हवाई अड्डा:
जोधपुर एयरपोर्ट (JDH) — पोखरण से लगभग 170 किमी दूर।
 एयरपोर्ट से पोखरण के लिए सड़क मार्ग पर लगभग 3.5 से 4.5 घंटे का समय लगता है।

  • गांधी मोहल्ला जैसे इलाकों में पहुँचने के लिए ऑटो-रिक्शा, ई-रिक्शा, और टेम्पो आसानी से मिल जाते हैं।
  • पोखरण छोटा शहर है, इसलिए अधिकतर स्थानों पर पैदल भी पहुँचा जा सकता है।

पौराणिक कथा

धर्जल माता को शक्ति का रूप माना जाता है और उनके बारे में अनेक लोककथाएं और किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।
सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार:

बहुत समय पहले एक राक्षस ने एक गाँव में आतंक मचा रखा था। वह राक्षस विशेषकर स्त्रियों और बच्चों को कष्ट देता था। गाँव के लोग डर के मारे दिन-रात छिपे रहते थे। तभी एक देवी शक्ति प्रकट हुईं जिन्होंने गाँव के पास स्थित पहाड़ी क्षेत्र में तपस्या की थी। वह देवी थीं धर्जल माता

माता ने त्रिशूल, तलवार, और शक्ति से उस राक्षस का नाश किया और गाँव को मुक्त करवाया। तभी से माता को वहाँ कुलदेवी रूप में पूजा जाने लगा।
कहा जाता है कि जिस कुल में धर्जल माता की पूजा होती है, वहाँ कोई बड़ा संकट प्रवेश नहीं कर सकता

खांप से

कुलदेवी के रूप में मान्यता

Dharwan
Dhiran
Gandhi
Navandar
Navandhar
Nawandhar

प्रमुख रिवाज और परंपराएं

1. कुल पूजा (Kul Poojan):

  •  विवाह, मुंडन, नामकरण या कोई बड़ा मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले कुलदेवी के दर्शन अनिवार्य माने जाते हैं।
  • पूरा परिवार माता के मंदिर जाकर पूजा करता है।

 2. नवरात्रि पूजन:

  • नवरात्रि में विशेष पूजा, हवन, और जागरण होते हैं।
  • इस समय मंदिरों में हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुँचते हैं।

 3. लाल चुनरी चढ़ाना:

  • माता को विशेष रूप से लाल चुनरी, नारियल, और सिंदूर चढ़ाया जाता है।
  • महिलाएं श्रृंगार सामग्री, मेहंदी, चूड़ियाँ आदि चढ़ाकर सौभाग्य की कामना करती हैं।

4. पारिवारिक उपस्थिति:

  •  कुलदेवी के दर्शन के समय पूरे परिवार का उपस्थित रहना आवश्यक माना जाता है।
  • विशेष कर नवविवाहित जोड़े विवाह के तुरंत बाद माता के दर्शन के लिए आते हैं।

 5. ध्वजा (पताका) चढ़ाना:

  • कुछ भक्त माता के मंदिर में ध्वजा (झंडा) चढ़ाते हैं।
  • यह मान्यता है कि इससे उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

 6. प्रसाद वितरण:

  • पूजा के बाद प्रसाद में खीर, हलवा, लापसी, या मेवा वितरित किया जाता है।
  • कई भक्त भंडारा भी करवाते हैं।

गोत्र से

कुलदेवी के रूप में मान्यता

बुग्दालिभ

विशेष पर्व

  • नवरात्रि, अष्टमी, पूर्णिमा
  • पंचामृत स्नान
  • नवदुर्गा हवन और कन्या पूजन (9 कन्याओं को भोजन कराना)
  • माता को त्रिशूल व ध्वज अर्पण 
  • सिंदूर, लाल चुनरी व नारियल चढ़ाना
  • नवदुर्गा कथा, दुर्गा सप्तशती या देवीभागवत का पाठ