धर्जल माता, जिन्हें धर्जल देवी, श्री धर्जल माताजी या धर्जल कुलदेवी के नाम से भी पूजा जाता है, एक शक्तिशाली और पूजनीय हिन्दू देवी हैं। ये देवी मुख्य रूप से राजस्थान और मालवा क्षेत्र में महेश्वरी समाज, मारवाड़ी बनिया, और कुछ राजपूत व वैश्य गोत्रों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
धर्जल माता को शक्ति (दुर्गा) का रूप माना जाता है, जो अपने भक्तों के संकटों का नाश करती हैं और परिवार व वंश की रक्षा करती हैं। इनका नाम श्रद्धा और भय दोनों का प्रतीक है — एक ऐसी देवी जो स्नेह से पालन करती हैं और संकट में रक्षक बनकर खड़ी होती हैं।
माता का स्वरूप:
विशेषताएं:
धर्जल माता न केवल एक देवी हैं, बल्कि संस्कृति, परंपरा, और आस्था की जीवंत मूर्ति भी हैं। वे कुल को जोड़ने वाली आत्मा की तरह पूजी जाती हैं — जो हर पीढ़ी को संरक्षण और आशीर्वाद देती हैं।
प्रातः 6:00 बजे से सांय 8:00 बजे तक |
दर्शन पूरी तरह निःशुल्क (Free) हैं।
धर्जल माता की पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह मान्यता है कि जब विभिन्न जातियाँ अपने मूल स्थानों से राजस्थान, गुजरात, या मालवा क्षेत्र में स्थानांतरित हुईं, तो वे अपने साथ अपने कुलदेवताओं की उपासना भी साथ लाईं। धर्जल माता उन कुलदेवियों में से एक हैं, जो संकट के समय अपने कुल की रक्षा करती थीं।
इतिहास में उल्लेख है कि राजस्थान में बार-बार हुए आक्रमणों के समय कुलदेवियों की पूजा और अधिक गहन हुई।
कुछ जनश्रुतियों के अनुसार, धर्जल माता ने किसी समय असुरों या दुष्ट शक्तियों का नाश करके अपने कुल की रक्षा की थी।
कई ग्राम्य लोक कथाओं और भजनों में इनकी वीरता और चमत्कारों का वर्णन मिलता है।
धर्जल माता का इतिहास केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है, जो समाज को एक धागे में जोड़ती है।
राजस्थान रोडवेज और निजी बस सेवाएं नियमित रूप से जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, और अन्य शहरों से पोखरण के लिए उपलब्ध हैं।
निजी वाहन, टैक्सी, या कैब से यात्रा भी बहुत आसान है और रास्ते में कई दर्शनीय स्थान भी आते हैं।
निकटतम रेलवे स्टेशन: Pokhran Railway Station
निकटतम हवाई अड्डा:
जोधपुर एयरपोर्ट (JDH) — पोखरण से लगभग 170 किमी दूर।
एयरपोर्ट से पोखरण के लिए सड़क मार्ग पर लगभग 3.5 से 4.5 घंटे का समय लगता है।
धर्जल माता को शक्ति का रूप माना जाता है और उनके बारे में अनेक लोककथाएं और किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।
सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार:
बहुत समय पहले एक राक्षस ने एक गाँव में आतंक मचा रखा था। वह राक्षस विशेषकर स्त्रियों और बच्चों को कष्ट देता था। गाँव के लोग डर के मारे दिन-रात छिपे रहते थे। तभी एक देवी शक्ति प्रकट हुईं जिन्होंने गाँव के पास स्थित पहाड़ी क्षेत्र में तपस्या की थी। वह देवी थीं धर्जल माता।
माता ने त्रिशूल, तलवार, और शक्ति से उस राक्षस का नाश किया और गाँव को मुक्त करवाया। तभी से माता को वहाँ कुलदेवी रूप में पूजा जाने लगा।
कहा जाता है कि जिस कुल में धर्जल माता की पूजा होती है, वहाँ कोई बड़ा संकट प्रवेश नहीं कर सकता।
कुलदेवी के रूप में मान्यता
1. कुल पूजा (Kul Poojan):
2. नवरात्रि पूजन:
3. लाल चुनरी चढ़ाना:
4. पारिवारिक उपस्थिति:
5. ध्वजा (पताका) चढ़ाना:
6. प्रसाद वितरण:
कुलदेवी के रूप में मान्यता
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