संक्षिप्त परिचय

भैसद श्री माता मंदिर, नीमच, मध्य प्रदेश में स्थित एक प्राचीन और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है, जो माहेश्वरी समुदाय के आगिवाल वंश की कुलदेवी (परिवार की अधिष्ठात्री देवी) के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर लगभग 600 वर्ष पुराना माना जाता है और नीमच के मीन मोहल्ला क्षेत्र में एक नदी के किनारे स्थित है। नीचे मंदिर के इतिहास, वास्तुकला, धार्मिक महत्व, पूजा-अर्चना, उत्सव, यात्रा की जानकारी, और अन्य प्रासंगिक विवरणों को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है

मंदिर खुलने का एवं आरती समय

खुलने का समय सुबह : लगभग 5:00 AM से 6:00 AM रात : लगभग 8:00 PM से 9:00 PM

आरती का समय

सुबह की आरती: संभवतः 6:00 AM से 7:00 AM के बीच।
शाम की आरती: संभवतः 6:30 PM से 7:30 PM के बीच, विशेष रूप से सूर्यास्त के समय।

प्रवेश शुल्क (Entry Fee)

दर्शन पूरी तरह निःशुल्क (Free) हैं।

यात्रा सुझाव (Visitor Tips)

नवरात्रि (चैत्र: मार्च-अप्रैल, शारदीय: सितंबर-अक्टूबर) मंदिर दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त समय है, क्योंकि इस दौरान विशेष आयोजन और उत्सव होते हैं।

ऐतिहासिक पक्ष

  • स्थापना: भैसद श्री माता मंदिर की स्थापना लगभग 600 वर्ष पूर्व (14वीं-15वीं शताब्दी के आसपास) मानी जाती है। यह मंदिर माहेश्वरी समुदाय के आगिवाल वंश द्वारा अपनी कुलदेवी की पूजा के लिए स्थापित किया गया था।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: नीमच, मालवा और मेवाड़ क्षेत्रों के बीच एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र रहा है। मंदिर की स्थापना इस क्षेत्र की धार्मिक और सामाजिक परंपराओं का हिस्सा हो सकती है। आगिवाल वंश के लोग, जो माहेश्वरी समुदाय का हिस्सा हैं, इस मंदिर को अपनी कुलदेवी का प्राथमिक पूजा स्थल मानते हैं।
  • कुलदेवी की कथा: भैसद माता को माहेश्वरी समुदाय की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय कथाओं के अनुसार, माता ने आगिवाल वंश की रक्षा और समृद्धि के लिए कई चमत्कार किए, जिसके कारण इस मंदिर का महत्व बढ़ा। हालांकि, विशिष्ट पौराणिक कथाएँ समुदाय के मौखिक इतिहास या वंशावली दस्तावेजों में ही अधिक प्रचलित हैं।
  • कैसे पहुँचें?

    पौराणिक कथा

  • कुलदेवी के रूप में: भैसद माता माहेश्वरी समुदाय के आगिवाल वंश की कुलदेवी हैं। हिंदू परंपरा में कुलदेवी की पूजा परिवार की समृद्धि, सुरक्षा, और कल्याण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। आगिवाल वंश के लोग अपनी पीढ़ीगत परंपराओं के तहत इस मंदिर में पूजा करते हैं, विशेष रूप से विवाह, जन्म, या अन्य महत्वपूर्ण पारिवारिक अवसरों पर।
  • आस्था का केंद्र: मंदिर भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति और मनोकामना पूर्ति का प्रमुख स्थल है। भक्त यहाँ स्वास्थ्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति, और पारिवारिक कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • सामुदायिक एकता: यह मंदिर माहेश्वरी समुदाय, विशेष रूप से आगिवाल वंश के लोगों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मंदिर में आयोजित धार्मिक और सामाजिक आयोजन समुदाय के बीच सामाजिक बंधन को मजबूत करते हैं।
  • क्षेत्रीय महत्व: नीमच और आसपास के क्षेत्रों (जैसे मंदसौर, चित्तौड़गढ़) के लोग भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, जिससे यह स्थानीय स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
  • खांप से

    कुलदेवी के रूप में मान्यता

    Aagiwal
    Agiwal

    प्रमुख रिवाज और परंपराएं

  • नवरात्रि उत्सव: नवरात्रि के नौ दिन मंदिर में विशेष उत्सवपूर्ण होते हैं। इस दौरान माता की विशेष सजावट, भजन-कीर्तन, और सामूहिक पू choses होती हैं। भक्तों की भीड़ इस समय विशेष रूप से बढ़ जाती है।
  • मेला: कुछ अवसरों पर मंदिर परिसर में छोटे स्तर का मेला या सामुदायिक समारोह आयोजित होता है, जिसमें स्थानीय लोग और आगिवाल वंश के भक्त शामिल होते हैं।
  • सामुदायिक आयोजन: माहेश्वरी समुदाय द्वारा मंदिर में समय-समय पर सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम, जैसे भंडारा (सामूहिक भोजन), कथा-प्रवचन, या सामुदायिक सभाएँ आयोजित की जाती हैं।
  • विशेष आयोजन: मंदिर की स्थापना की वर्षगाँठ या अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर विशेष समारोह हो सकते हैं, जिनमें समुदाय के लोग सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
  • गोत्र से

    कुलदेवी के रूप में मान्यता

    चंद्रास